एक आदिवासी की आशाओं का आकाशः एक ध्रुव तारे की तलाश अनिल गुप्ता दीक्षांत भाषण, बस्तर विश्वविद्यालय फरवरी २०, २०२०

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किसी भी समाज़ को विकसित करने का प्रयास उस समाज़ की महत्वाकांक्षाओं   के अनुसार ही होना चाहिये। पर अगर आभावों  से  ग्रस्त इतिहास ने उन समाज की अपेक्षाओं को कुंठित किया है तो हमे उनकी अभिलाषा और अपेक्षाओं को बढ़ाना होगा. 

बिना एसा किये, अगर हम छोटे-छोटे सपनो को पूरा कर अपने दायित्वो का निर्वाह कर लेगें तो यह समाहित दूरगामी विकास  की सोच के साथ अन्याय होगा।

शिक्षा संस्थान एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सामाजिक स्वप्नों के मापदंड बनाने में।  विधार्थिओं  को सामाजिक विकास की संभावनाओ के साथ जिम्मेदारी के भाव के साथ जोड़ना हम शिक्षकों  का ही काम है। पर यह काम कैसे होगा? कैसे हम समाज में विधमान अकर्मण्यता  और सुषुप्त  नवसर्जन की प्रवित्तियो को सांधेगें। क्या  बस्तर क्षेत्र देश को प्रकृत्ति, समाज, सामुदायिक मर्यादाओं, और सद्भाव के कुछ नये सबक सिखायेगा? किस तरह हम समाज के उपेक्षित वर्गों की ज्ञान संपन्नता को वकास का आधार बनाएंगे ? क्या जो आर्थिक रूप से गरीब हैं, वो सभी तरह के ज्ञान और सृजनशीलता में गरीब होते हैं? मैं अपनी किताब ग्रैस्रूट्स इनोवैशन, यानि जमीनी स्तर के नवसर्जन के बारे मे इस विरोधबहस पर चर्चा करता हूँ

क्या सामुदायिक एवम सर्वांगीण  विकास  के गांधी कें विचार उत्तेजित एवं अधीर युवाओं को मुख्य धारा से जोड़ेगे ?  किस प्रकार हम क्षेत्रीय विकास   में शिक्षा की भूमिका को हम पुनः पप्रभाषित  करेंंगे 

बहुत से प्रश्न है, सभी का उत्तर तो सीमित समय मे शायद ढूंढ पाना संभव न हो पर एक ईमानदार कोशिश अवश्य करनी चाहिये।

मैं अपनी बात कई  वर्ष पूर्वन २०१२ में  नारायण पुर में की गई शोधयात्रा के अनुभवो के आधार शुरु करता हूँ।

प्रकृति का सम्मानः

जैसे ही एक गाँव में हम पहुँचे, वहां कई कब्रें दिखी । ना तो कोई मुसलमान भाई वहां था, ना कोई ईसाई फिर कब्र कैसे, पूछा स्थानीय साथियों से, बताया कि यहां परम्परा है कि जब  व्यक्ति की मृत्यु प्राकृतिक रूप में होती है, तो उसको दफनाते है। अदि जब व्यक्ति किसी रोग से मरता है तो उसको जलाते है। धानाराम ने यह ज्ञान सरगीपाल गाँव के पास हमसे बांटा और हमे एक नए दर्शन का बोध हुआ ।

कितनी सुंदर परम्परा है, इसी तरह को शर्ते हमें गाढचिरोली क्षेत्र में भी देखने को मिली। धरती माँ की कौख में किटाणु युक्त शरीर क्यूं अर्पित करें, क्युं न यहा का पर्यावरण इतना सुरक्षित रहेगा। इस तरह की प्रवत्ति  हमारी लोगों को धर्म के आधार पर बांटने की संकीर्ण सोच पर प्रश्न उठटो है, क्या इन अदड़ीवासी परंपराओं को हम पिछड़े पान का प्रतीक मानेंगे ?

उत्कृष्टता का सम्मानः

थोड़ी दूर और गये तो कुछ छोटे मंदिर बने दिखे समाधिओं के ऊपर । किसी में किसी वैध की मूर्ति थी, किसी में किसी शिकारी की और किसी में एक अध्यापक की। पूछने पर स्थानीय तथाकथित पिछड़े आदिवासियों ने बताया के जो लोग समाज में अत्यंत उत्कर्षता पा लेते है, उनकी मूर्ति बना कर वो उनकी याद को आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा रूप सँजोते हैं.

उत्पादकता का सम्मान

अगर  कच्चे फल तोड़ना शुरु करोंगे तो हमें पके फलो की ज्यादा पैदावार नही मिलेगी। इसलिये मार्का पांडन त्योहार मनाया जाता है। धूमधाम के साथ जिसके बाद आम को तोड़ना मान्य होता है। समाज कैसे अंकुश लगाता है सामुदायिक प्रवृत्तियो पर जो  उत्पादकता को कम कर सकती है, सहज सीखने को मिलता है।

विभिन्नता का सम्मान

जैविक और पकवानो की विभिन्ता आपस मे जुड़ी है, चाहे चींटी की सब्जी हो बुखार को काबू करने के लिये था। उसका डंख लगाना हो तरह तरह की जंगल से इकट्ठी की गई सब्जिया बहुत काम आती है। पौष्टिकता व आहार की विभिन्नता को मिलाये रखने मे।  बिना उगाई हिन सब्जियां  कुपोषण को दूर करने का एक सबल विकल्प हो सकती हैं यदि ऐसे ज्ञान का मध्यांतर भोजन की सामग्री  में शामिल  कर लिया जाए.

स्थानीय सूझबूझ का सम्मानः

कर्रा या आंध्रप्रदेश में ओडिसा पेड़ की डाली धान के खेत में लगाने से कीड़ो की रोकथाम की स्थानीय समाज ने। कम खर्च में समस्यायो को हल करने का प्रयास पूरे विश्व में हो रहा है। किफायती नवसर्जन, Frugal  innovation को  जमीन से सीखने के लिये या समाज के लिये बाहर से लाने के लिये हनी बी नेटवर्क ने 30 साल तपस्या की है, प्रयास किया है। विश्व का  अद्वितीय ज्ञान कोष बनाया और मुक्त रुप से बांटा है। 1993 में सृष्टि, 1997 में ज्ञान व 2000 में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान की स्थापना। इस जुम्बिश का संस्थागत रुप है। इस परम्परा का विचार शोधयात्राओ द्वारा समाज के अदभुत ज्ञान को बांटने के संस्कार से पैदा हुआ है।

स्थानीय कलाओ का वैश्विक स्तर पर सम्मानः

एडका  गाँव के घंटी  वाले मिट्टी के हाथी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लेकिन कितने विध्यार्थियों को बस्तर की कला, ज्ञान, मर्यादा व संस्कृति की सम्पन्नता का पूरा ज्ञान है। अगर इलेक्ट्रोनिक्स के विध्यार्थी ताली की आवाज़ से चलने वाले सेंसर और पहले रिकार्ड की कला की कहानी,  मिट्टी के हाथी में लगा   दें  तो शहर के लोग हाथी के साथ उसका इतिहास, कलाकार की जीवन गाथा को भी सुन सकेंगे।

हमें परम्परा, आधुनिक विज्ञान, तकनीक  व बाज़ार का समन्वय बनाना ही होगा यदि टिकाउ विकास का मार्गदर्शन करना है। 1993 में सृष्टि की स्थापना के बाद ज्ञान की स्थापना की हानी बी नेटवर्क ने 1997 में; इसका काम है नवसर्जन, निवेश और उद्यम के त्रिकोण  को जोड़ना –इसी मॉडल को राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान निफ के रूप में 2000 में विज्ञान और तकनीक  विभाग व वित्त मंत्रालय की मदद से स्थापित किया गया।

मेरा प्रस्ताव है की माननीय मुख्यमंत्री जी आपनी देखरेख व मार्ग दर्शन में  ज्ञान छत्तीसगढ़ की स्थापना  करे, ज्ञान को सभी  विश्वविद्यालय चार कामों द्वरा समर्थन दे, बस्तर  विश्वविद्यालय इस काम में इसी गर्मी की छुट्टियों में  पहल कर सकता हैं।

सभी विद्यार्थी अलग अलग कॉलगे में नवसर्जन क्लब बनाए;  हानी बी नेटवर्क उनका मार्गदर्शन अनलाइन शिक्षा  द्वारा करेगा। सभी विद्यार्थी चार काम करेंगे। वो गाँव गाँव में नवसर्जन खोजेंगे व उनक असम्मान कारेनेग, उनको कक्षा में बुलनएनेग, उनका प्रसार करनेगे, ऐसी अपूर्ण आवश्यकताओं को भी खोजेंगे, लिखेंगे, जिनको समाज ने अभी तक पूरा नहीं  किया, उन पर शोध शुरू होगा और क्षेत्रीय व राष्ट्रीय  विकास को  गति, गर्जन और नई दिशा मिलेगी; इस हेतु हम पूरा सहयोग करेंगे।

अंत मे मैं विध्यार्थियो को कुछ सुझाव देना चाहूँगा ताकि वो अपने जीवन में सम्पन्नता  व निच्छलता के साथ सामाजिक व प्राकृतिक

संतुलन को बनाकर प्रगति करे।

मुक्त ज्ञान आदान प्रदान, वितरण : मौलिकता का विकास

ज्ञान ओर विज्ञान की दुनिया में नेतृत्व उन्ही को मिलता है जो अपने विचारो को मुक्त रुप से बोंटते है। हमे अपनी  अपलोड व डाउनलोड सामग्री के अनुपात की हर सप्ताह समीक्षा करनी चाहिए। हम केवळ अन्य लोगों का ज्ञान, ज्यादातर पश्चिमी देशो का, ज्ञान ही पोषित करेंगे तो हमारे मौलिक चिंतन और सर्जन की जगह कैसी बनेगी। छोटी जगह पर  होने क मतलब यह नहीं है की हमारी सोच छोटी है, हम और आप यहीं से नए  सिद्धांत,  एवं विश्लेषण के नए तरीके बना सकते हैं  

यदी विध्यमान सिध्धांतो व समीकरनो का हम केवल स्वीकार ही नही करेंगे पर इनके अनुसार अपने शोध को ढाल लेंगे,  तो फिर हमें नए सिध्धांत, नई थीयोरीस,नये मापदंड ओर नई सोच कैसे पैदा करेंगे? अध्यापको को भी प्रेरित करता होगा कि मौलिक चिंतन व अवधारणाओ को बल मिले।

सामाजिक अभावो व विचारो के अनुत्तरित प्रश्नो का स्पष्टता और साहस क साथ हाल खोजना  होगा।  30 वर्ष पहले स्थानीय बुनियादी नवसर्जन पर कोई  कोई थ्योरी नहीं थी, न ही कोई आंदोलन या नीति थी। विश्व में हानी बी नेटवर्क ने मधुमख्खी  के व्यवहार से सीख कर क खुली, जिम्मेदार और न्याय पूर्ण व्यवस्था बनाई। बाहर से और यहाँ  से भी शोधक आकर स्थानीय समाज  का ज्ञान सँकलित  कर के ले जाते हैं, उसके राचयिता  स्वयं बन जाते  हैं, लोग गुमनाम हो जाते हैं, उनकी नवीन जानकारियों  की बौद्दिक संपदा उनसे छिन जाती है, स्थानीय  लोगो के बौधिक संपदा के अधिकारो को सीधा सीधा उलंघन व शोषण होता है

हनी बी नेटवर्क ने अन्याय के विरुद्धह आवाज उठाई, नीतियाँ  व संस्था बनाई, और समाज के लिए मुक्त ज्ञान और उद्योग क लिए बौद्दिक  संपदा की मर्यादा का निर्माण किया

स्थानीय मूल्यवृध्धि

जंगलमें पाई जाने वाली वनस्पतियोंमें कोई भी मूल्यवृध्धि गाँव के स्तर पर नहीं की जाती।यदि आदिवासी केवल वनस्पति को इकठ्ठा करने वाली मजदूरी करेंगे तो वो हंमशा गरीब  ही रहेंगे।

उनके आगे बढ़ने में आई  सभी बाधाओ को समयबध्ध सीमा मे दूर करना होगा। उसके लिए चाहे जंगल विभाग को अपनी सोच बदलनी पडे या ठेकेदारों के चंगुल से नौकरशाही को आज़ाद करना पडे। जो करना है वह तो  करना ही होगा

यदि किसी भी व्यवस्था से ठेकेदारों को तकलीफ हो तो मान लेना चाहिये कि हम सही दिशा में है।

बडी बडी कंपनीयो को व जंगल उत्पाद को प्रोसेस करने वाली इकाइओ  के संगठनो के अनुसार स्थानीय  स्तर पर  मूल्यवृध्धि की इकाई लगाने को प्रेरित करना जरूरी है  । बहुत वर्ष पूरब सॉलवेंट इक्स्ट्रैक्शन समूह के प्रतिनिधियों क क सभा में जिला कॉलेक्टो रके अनुरोध पर मैं जगदलपुर आया था।

बम्बई ले उद्यमिऑन  का आग्रह था की   जंगल से  न खाने वाले  तिलहनो का बीज जैसे साल का बीज यदि अच्छा व खराब अलग अलग कर दिया जाए, वो दोनों के लिए एक जैसा दाम देगें। यह सफाई या ग्रेडिंग मुंबई में कराने मे बहुत  खर्चा आता है। उम्मीद है की बस्तर  विश्वविध्यालय सभी तरह की संभावनाओ पर शोध व नीतियों  पर चिंता कर आदिवासी युवाओं को   आगे बढाएगें, उनके उद्यम लगवाएंगे, उनको उद्यमिता की ट्रैनिंग दी जाएगी, और जोखिम राशि भी दी जाएगी

आज हम प्रण करे कि समाज का ज्ञान स्थानीय स्तर पर मुल्यवृध्धि के साथ बाहर जायेगा. उनकी बौधिक संम्पदा की सुरक्षा भी होगी। उनके ज्ञान पर आधारित दवाइ या अन्य उत्पादन के होने वाले मुनाफे का न्यायोचित हिस्सा उन्हें मिलेगा। उनके स्वयं उद्याम लगवाएंगे, सहकारी तौर पर, उत्पादक कम्पनीऑन  द्वारा या निजी  स्तर के उद्यमों के माध्यम से

यहाँ की संस्कृति , कला, प्रकृति का सम्मान  करने की परंपरा का सम्मान

शिक्षा पाठ्यक्रम में स्थानीय  सूझबूझ को वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पाठ्यक्रम में शामिळ करना होगा।

विद्यार्थिओं  को यह मर्यादा बनानी  होगी कि जो भी शोघ प्रबंध स्थानीय ज्ञान पर आधारित लिखते है उसकी एक प्रतिलिपि स्थानीय विद्यालाओं व पंचायत को औपचारिक रुप से देनी होगी. हम स्थानीय  फोटो की कापी भी समाज के पास पहुंचाते है। 

बस्तर की शीधयात्रा में केवल कुछ ही तालाब मिले थे जिनमें गर्मी में भी पानी था, आशा है यह काम बहुत तेजी से सभी  गाँव में बारिश के पाने को रकने के लिए किया जाएगा, जैविक उत्पाद और आयुर्वेदिक उद्यम  का तेजी से विकास होगा

हमे स्थानीय सुझबुझ व सहज ज्ञान की परंपरा को आगे बढाना है.शोषण की गहरी  जडों को पूरी  तरह उखाड फेकना है। ओर समयबध्ध तरीके  से लोगो के  ज्ञान आधारित उधम लगाने के लिये जिला/विश्वविध्यालय स्तर पर जोखिमराशि प्रवर्त करानी होगी।

बिना छूट य ग्रांट के विचार-उत्पाद नहीं बनेंगे ओर मुक्त या बौधिकभाव से सुरक्षित होकर बाजार तक पहुँच  नहीं पाएगा।

हमें विध्यार्थीयों का कौशल और ज्ञान तो बढ़ाना है  पर दौणाचार्य की तरह उनका अंगूठा नहीं कटवाना है।उनको अपने कौ3शल,प्रयास ओर उधम से आगे बढाना है।

आज सभी  स्नातक हो रहे विध्यार्थीयों का व उनके माता,पिता,मित्रो व गांव के बुजुर्गो  को एकबार फिर से अभिनंदन

ईश्वर आपको आपके जीवन  में आगे बढने की प्रेरणा व सामर्थ्य दे।

समाज के हर वर्ग को एक साथ समाहित विकास का मौका मिले, आइये बस्तर के विकास के नए अवसर नई उम्मीदों  के साथ खोजनें में  तत्पर हो जाएं

बस्तर देश का अग्रणी क्षेत्र—-बने, इस आशा व विश्वास के साथ

जय हिंद-जय बस्तर, जी  छतीसगढ़

anilg

Visiting Faculty, IIM Ahmedabad & IIT Bombay and an independent thinker, activist for the cause of creative communities and individuals at grassroots, tech institutions and any other walk of life committed to make this world a more creative, compassionate and collaborative place