an ode to kaali maan

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माँ से Ã Â¤â€ Ã Â¤Â°Ã Â¤Â¾Ã Â¤Â§Ã Â¤Â¨Ã Â¤Â¾

मुझे वैसा ही रहने Ã Â¤Â¦Ã Â¥â€¹
जैसा में Ã Â¤Â¹Ã Â¥â€šÃ Â¤Â
एक Ã Â¤â€¦Ã Â¤Â§Ã Â¥â€šÃ Â¤Â°Ã Â¤Â¾
एक असीमित
एक Ã Â¤â€¦Ã Â¤Â¸Ã Â¤â€šÃ Â¤Â¤Ã Â¥ÂÃ Â¤Â·Ã Â¥ÂÃ Â¤Å¸
एक Ã Â¤â€¦Ã Â¤ÂªÃ Â¤Â°Ã Â¤Â¿Ã Â¤ÂªÃ Â¤â€¢Ã Â¥ÂÃ Â¤Âµ
एक Ã Â¤â€¦Ã Â¤Â§Ã Â¥â‚¬Ã Â¤Â°
क्यूँ Ã Â¤Â¹Ã Â¤Â° Ã Â¤ÂªÃ Â¤Â² सुधारने की कोशिश करती हो, क्या मिलेगा तुम्हे
किसकी चिंता में हो Ã Â¤Â¤Ã Â¥ÂÃ Â¤Â®
क्यूँ सभी कौनो को गोलाकार बनाने  पर तुली हो
किसी की अनुमति नहीं Ã Â¤Å¡Ã Â¤Â¾Ã Â¤Â¹Ã Â¤Â¿Ã Â¤Â
मुझे
मेरा स्वातंत्र्य
मुझे Ã Â¤Â¤Ã Â¥ÂÃ Â¤Â®Ã Â¥ÂÃ Â¤Â¹Ã Â¤Â¾Ã Â¤Â°Ã Â¥â‚¬  Ã Â¤Â¸Ã Â¥â€¹Ã Â¤â€”ात  के रूप में मिला है,
अब इसे लौटने को मत कहो
मेरी अर्चना स्वीकार करने की इतनी बढ़ी शर्त क्यूँ
आखिर मैने इतनी कम में जीने की कोशिश  तो की है, ईमानदारी से
तुम्हे इत्मिनान नहीं Ã Â¤Â¹Ã Â¥Ë†
शायद डरती हो अपनी ममता  के  Ã Â¤â€”ागर के टूटने की आशंका से
यह तुम्हारी कमजोरी है, मुझे उसका हिस्सेदार  मत बनाओ
में तुम्हारी शरण में केवल इसी Ã Â¤Â²Ã Â¤Â¿Ã Â¤Â Ã Â¤â€ Ã Â¤Â¯Ã Â¤Â¾ हूँ,
जो भी सच्चे स्वाभाविक रूप से अपनी अर्चना करे,
उनको स्वीकार करों,
फूलो का वज़न मत देखो,
 Ã Â¤ÂÃ Â¤â€¢ पंखरी भी काफी होनी Ã Â¤Å¡Ã Â¤Â¾Ã Â¤Â¹Ã Â¤Â¿Ã Â¤Â
पहले तो तुम इतनी सारी चीजों को तोला  नहीं करती थी,
क्या मेरी कमी रही ईमानदारी Ã Â¤Â®Ã Â¥â€¡Ã Â¤â€š
या मैने ही कुछ Ã Â¤ÂµÃ Â¥ÂÃ Â¤Â¯Ã Â¤Â¾Ã Â¤ÂªÃ Â¤Â¾Ã Â¤Â° Ã Â¤â€¢Ã Â¤Â¿Ã Â¤Â¯Ã Â¤Â¾
अपनी अपेक्षाओं की Ã Â¤Â¥Ã Â¤Â¾Ã Â¤Â²Ã Â¥â‚¬
में तुम्हे थोडा परोसा, और थोडा शायद अपनी पास Ã Â¤Â°Ã Â¤â€“ा
उसकी सजा इतनी सख्त
अब कुछ नहीं Ã Â¤Å¡Ã Â¤Â¾Ã Â¤Â¹Ã Â¤Â¿Ã Â¤Â
बस सच्चाइयों   Ã Â¤â€¢Ã Â¥â‚¬ क़द्र करती रहो,
सच्चे लोग कम हैं, उन्हे निराश  मत करो
उन Ã Â¤â€¦Ã Â¤Â¨Ã Â¤â€”ढ़ो Ã Â¤â€¢Ã Â¥â‚¬ बात मन लो
वरना मेरी शामत आ जायेगी
और में कोई जवाब ना दे Ã Â¤Â¸Ã Â¤â€¢Ã Â¥â€šÃ Â¤ÂÃ Â¤â€”ा
मानोगी ना?

Anil K Gupta

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